सचेत रहें, गर्मियों में चपेट में लेती है ये बीमारी

सचेत रहें, गर्मियों में चपेट में लेती है ये बीमारी

सुमन कुमार

हमारे शरीर पर अलग-अलग मौसम का अलग-अलग असर होता है ये तो हम सभी जानते हैं। इसलिए अलग अलग मौसम में बीमारियां भी अलग अलग होती हैं। जहां सर्दियों में कई तरह के फ्लू हमें अपनी चपेट में लेते हैं और सांस की बीमारियां जोर पकड़ लेती हैं वहीं ब्‍लड प्रेशर भी सामान्‍य से अधिक रहने लगता है। इसी प्रकार गर्मियों में भी कई तरह की बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है जिनमें डायरिया, पीलिया, सनबर्न, कंजक्टिवाइटिस आदि मुख्‍य हैं। बरसात और सर्दियों के बीच मच्‍छर जनित बीमारियों का जोर रहता है। यहां हम बात करेंगे गर्मियों में पेट की बीमारी डायरिया यानी आंत्रशोथ की।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

दिल्‍ली के जीवनशैली रोगों के वरिष्‍ठ चिकित्‍सक डॉक्‍टर अनिल चतुर्वेदी कहते हैं कि गर्मियों में हैजा, पेचिस, आंत्रशोथ जैसी बीमारियां तेजी से फैलती हैं और इन सभी बीमारियों के कारक आमतौर पर एक जैसे होते हैं। ये सारी ही बीमारियां शरीर को बेहद कमजोर बना देती हैं और कई बार जानलेवा भी साबित होती हैं।

लक्षण

इन सभी बीमारियों में शुरू में दस्त और बुखाार के लक्षण होते हैं। इनकी चपेट में आने के 6 से 8 घंटे के अंदर ही तेज दस्त की वजह से शरीर में पानी कमी हो जाती है और गुर्दों में कम पानी जाने के कारण कुछ दूसरी परेशानियां भी होने लगती हैं।

कारण

डॉक्‍टर अनिल चतुर्वेदी कहते हैं, जहां तक आंत्रशोध की वजह का सवाल है तो ये वायरस और वैक्टीरिया दोनों के कारण हो सकता है मगर गर्मियों में ये अधिकतर बैक्टीरिया के कारण होता है। दरअसल गर्मियों में सड़क के किनारे बिना साफ सफाई वाले कटे फल खाने, खुले में निकाला गया जूस पीने, बासी चाट, पकौड़े खाने इत्यादि से इनके जरिये बैक्‍टीरिया हमारे शरीर पर आसानी से आक्रमण कर सकते हैं। होता ये है कि गर्मियों में खाद्य पदार्थ बहुत जल्‍दी खराब होते हैं और उनमें बीमार बनाने वाले बैक्‍टीरिया पनप जाते हैं। गर्मियों में मक्खियां भी इस बीमारी को फैलाने में मददगार होती हैं क्‍योंकि वो बैक्‍टीरिया को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं। गर्मियों में जहां तक संभव हो बाहर खाने से बचें क्‍योंकि कई बार देखा गया है कि महंगे से महंगे रेस्‍त्रां का खाना भी आपको बीमार बना देता है।

सावधानी

जैसा कि पहले लिखा गया है इस बीमारी में तेज दस्‍त की शिकायत होती है और इसके कारण शरीर में पानी के साथ इेलेक्‍ट्रोलाइट्स की गंभीर कमी हो जाती है। इसलिए डायरिया का इलाज सबसे पहले घर से ही शुरू कर देना चाहि‍ए। इसके लिए नमक चीनी का घोल घर में बना सकते हैं अथवा इलेक्‍ट्रॉल पाउडर खरीदकर उसका घोल बना सकते हैं। लेकिन ध्‍यान रहे, अगर दस्‍त रुक नहीं रहे हों तो मरीज को डॉक्‍टर से नहीं दिखाना गंभीर स्थिति को न्‍योता दे सकता है। इसलिए बेहतर है कि किसी अच्‍छे डॉक्‍टर से सलाह ली जाए।  

इस बात का ध्यान रखें कि किसी हालत में सड़क किनारे के कटे फलों का सेवन न करना पड़े। बाजार से पूरी तरह पके फल ही घरेलू इस्तेमाल के लिए खरीदें ओर उन्हें भी दो-तीन बार अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें। आंत्रशोध में पानी को उबालकर ओर फिर ठंडा कर पीने की सलाह दी जाती है। एक बात का ध्यान रखें कि पेट की अधिकांश बीमारियों की तरह आंत्रशोध भी संक्रामक रोग है। इसलिए यदि किसी इलाके में पहले से इसका प्रकोप है तो साफ-सफाई के प्रति अतिरिक्‍त सावधानी बरतें।

होम्‍यापैथी में इलाज

होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. ए.के. अरुण के अनुसर आंत्रशोध का प्रकोप गर्मियों में मुख्यतः तीन वजह से बढ़ता है। सबसे पहला कारण है पीने के पानी का दूषित होना, दूसरा कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी और तीसरा कारण है पोष्टिक भोजन की कमी। आमतौर पर यह देखा गया है कि आंत्रशोध का प्रकोप सबसे अधिक उन्हीं इलाकों में होता है जहां पानी की गुणवत्ता खराब होती है। इन इलाकों में जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वह तत्काल इसकी चपेट में आ जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में लोगों के इस रोग की चपेट में आने का मुख्य कारण पानी के साथ-साथ बासी भोजन भी है। गर्मियों में खाना जल्दी खराब होता है और उसे उपयुक्त तापमान पर रखने की सुविधा नहीं होने के कारण लोग खराब खाना ही खा लेते हैं और इसका नतीजा आंत्रशोध के रूप में भुगतान होता है।

जहां तक इलाज का सवाल है तो एलोपैथी के मुकाबले होम्योपैथी में ज्यादा बेहतर इलाज मौजूद है। एक चीज दोनों में समान है और वह है नमक-चीनी का घोल। इसके अलावा इसकी अलग-अलग अवस्थाओं के होम्योपैथी में अलग-अलग दवाइयां इस्तेमाल की जाती हैं। उदाहरण के लिए यदि तैलीय भोजन के कारण दस्त हो रहे हों तो पल्सेटीला का इस्तेमाल करना चाहिए। ज्यादा कैलोरी वाले भोजन मसलन बर्गर, पिज्जा आदि के कारण समस्या हो तो नक्सवोमिका दो-तीन दस्त के बाद ही यदि शरीर को फायदा पहुंचाता है। इसके अलावा यदि आंत्रशोध के कारण मरीज की स्थिति नाजुक अवस्था में पहुंच जाए, उसकी नब्ज धीमी होने लगे तो कैंफर देना चाहिए। कैंफर को इस अवस्था में जीवनरक्षक भी माना जा सकता है।

इसके अलावा गर्मियों में आंत्रशोध की आम अवस्था में सल्फर दिया जा सकता है। दस्त के साथ लू का प्रकोप हो तो ग्लोनाइन से लाभ होता है। आंत्रशोध से सबसे अधिक पीडित होते हैं 2 महीने से लेकर 4 वर्ष की उम्र के बच्चे। इस उम्र में एक से दो दस्त के बाद ही बच्चे निढाल हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में कैलोमीला नामक दवा देनी चाहिए। लेकिन एक बात स्पष्ट रूप से समझ लें कि इन दवाइयों की निम्न शक्ति का ही इस्तेमाल करें और इस्तेमाल से पहले किसी योग्य होम्योपैथ से सलाह अवश्य लें।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।